दोस्त का जवाब बहुत समय पहले की बात है , दो दोस्त बीहड़ इलाकों से होकर शहर जा रहे थे . गर्मी बहुत अधिक होने के कारण वो बीच -बीच में रुकते और आराम करते . उन्होंने अपने साथ खाने-पीने की भी कुछ चीजें रखी हुई थीं . जब दोपहर में उन्हें भूख लगी तो दोनों ने एक जगह बैठकर खाने का विचार किया| खाना खाते – खाते दोनों में किसी बात को लेकर बहस छिड गयी ..और धीरे -धीरे बात इतनी बढ़ गयी कि एक दोस्त ने दूसरे को थप्पड़ मार दिया .पर थप्पड़ खाने के बाद भी दूसरा दोस्त चुप रहा और कोई विरोध नहीं किया ….बस उसने पेड़ की एक टहनी उठाई और उससे मिटटी पर लिख दिया “ आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मुझे थप्पड़ मारा ” थोड़ी देर बाद उन्होंने पुनः यात्रा शुरू की , मन मुटाव होने के कारण वो बिना एक -दूसरे से बात किये आगे बढ़ते जा रहे थे कि तभी थप्पड़ खाए दोस्त के चीखने की आवाज़ आई , वह गलती से दलदल में फँस गया था …दूसरे दोस्त ने तेजी दिखाते हुए उसकी मदद की और उसे दलदल से निकाल दिया| इस बार भी वह दोस्त कुछ नहीं बोला उसने बस एक नुकीला पत्थर उठाया और एक विशाल पेड़ के तने पर लिखने लगा ” आज मेरे सब...
एक नया अवसर है खुद को साबित करने का। हर सुबह एक नया आरंभ है, एक नया अवसर है खुद को साबित करने का।" ज़िन्दगी एक संघर्ष है, लेकिन ये संघर्ष ही हमें निखारते हैं। कई बार हम थक जाते हैं, टूट जाते हैं, और सोचते हैं कि अब आगे बढ़ना मुमकिन नहीं। लेकिन ठीक उसी मोड़ पर आपकी असली जीत छुपी होती है। याद रखो, सूरज भी अंधेरे के बाद ही चमकता है। हर उस दिन को गिनो जब तुमने हार मानने की जगह कोशिश करना चुना। कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता, और आत्मविश्वास ही तुम्हारा सबसे बड़ा हथियार है। जब लोग कहें कि "तुम नहीं कर सकते," तो उन्हें अपने कर्मों से जवाब दो, अपने परिणामों से चुप करा दो। हर असफलता एक सीख है, और हर सीख एक कदम है सफलता की ओर। खुद से वादा करो कि तुम थकोगे, लेकिन रुकोगे नहीं। गिरोगे, लेकिन हार नहीं मानोगे। क्योंकि दुनिया उन्हीं को सलाम करती है जो हालातों के खिलाफ जाकर जीतते हैं। आज का दिन तुम्हारा है — इसे ऐसा बनाओ कि कल का तुम खुद पर गर्व कर सको।
आज ही क्यों नहीं ? एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था |गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था | सदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था | अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जाये| आलस्य में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है | ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता है| वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता है, तो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता| यहाँ तक कि अपने पर्यावरण के प्रति भी सजग नहीं रहता है और न भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है | उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बना ली | एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा –‘मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, कहीं दूसरे गाँव जा रहा हूँ| जिस भी लोहे की वस्तु को तुम इससे स्पर्श करोगे| वह ...
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